जो इस चमन में ये गुल सर्व-ओ-यासमन के हैं
ये जितने रंग हैं सब तेरे पैरहन के हैं
ये सब करिश्मा-ए-अर्ज़-ए-हुनर उसी के हैं
गुलों में नक़्श तिरे ही लब-ओ-दहन के हैं
तबीअतों में अजब रंग-ए-अज्नबिय्यत है
ये शाह-पारे तो सब तेरे अर्ज़-ए-फ़न के हैं
हवस में इश्क़ में तहज़ीब-ए-तर्बियत का है फ़र्क़
वगरना दोनों उसी मकतब-ए-बदन के हैं
हमें तो ला के यहाँ पर बसा दिया गया है
ख़बर है मुल्क-ए-अदम हम तिरे वतन के हैं
अमीर-ए-शहर तू अपनी क़बा-ए-ज़र को भी देख
सब इस में तार मिरे रेज़ा-ए-कफ़न के हैं
कहाँ अकेले मिरी ख़्वाहिशों का दम निकला
निशाँ भी उस के गले पर मिरी घुटन के हैं
ख़ुद अपने शहर की तहज़ीब भूल बैठे हैं
ये कौन लोग हैं और जाने कैसे बन के हैं
मेरे हरीफ़ मिरा एहतिराम करते हैं
सुख़न-वरों में भी चर्चे मिरे सुख़न के हैं
ग़ज़ल
जो इस चमन में ये गुल सर्व-ओ-यासमन के हैं
शाहिद कमाल