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जो हो सके तो आप भी कुछ कर दिखाइए | शाही शायरी
jo ho sake to aap bhi kuchh kar dikhaiye

ग़ज़ल

जो हो सके तो आप भी कुछ कर दिखाइए

सय्यद फ़ज़लुल मतीन

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जो हो सके तो आप भी कुछ कर दिखाइए
उम्र-ए-अज़ीज़ अपनी न यूँ ही गँवाइए

दिन को ठिठुरती धूप में टाँगें पसारिए
रातों को जाग जाग के महफ़िल सजाइए

चाय के एक कप का यही है मुआवज़ा
यारों को अहद-ए-रफ़्ता के क़िस्से सुनाइए

नाम-ओ-नुमूद की हो अगर आप को हवस
जैसे भी हो किसी तरह बस छुपते जाइए

वो अजनबी भी आश्ना बन जाएगा 'मतीन'
उस की गली के रोज़ ही चक्कर लगाइए