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जो हो सका नहीं दरपेश उसे बनाता हुआ | शाही शायरी
jo ho saka nahin darpesh use banata hua

ग़ज़ल

जो हो सका नहीं दरपेश उसे बनाता हुआ

सय्यद काशिफ़ रज़ा

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जो हो सका नहीं दरपेश उसे बनाता हुआ
मैं ख़ुद भी बीत गया रास्ते बनाता हुआ

सँवर रहा था कोई आइना-नशीं जब मैं
फ़िगार-दस्त हुआ आइने बनाता हुआ

बना रहा हूँ तुझे मैं कि हो मिरी तकमील
सँवरता जाता हूँ मैं ख़ुद तुझे बनाता हुआ

वो एक शक्ल जो है उस का मरकज़ी किरदार
उजड़ गया है ये मंज़र उसे बनाता हुआ