EN اردو
जो दिल को मोहब्बत के मज़े आए हुए हैं | शाही शायरी
jo dil ko mohabbat ke maze aae hue hain

ग़ज़ल

जो दिल को मोहब्बत के मज़े आए हुए हैं

मिर्ज़ा क़ादिर बख़्श साबिर देहलवी

;

जो दिल को मोहब्बत के मज़े आए हुए हैं
वो अपनी तबीअ'त पे अभी छाए हुए हैं

हर बात पे इज़हार-ए-नज़ाकत है हया से
साबित है कि तकलीफ़ भी कुछ पाए हुए हैं

कुछ तुम ने हमें दिल में समझ रक्खा है समझो
कुछ हम भी तुम्हें ज़ेहन में ठहराए हुए हैं

फिर मिलने को जी चाहता है यार का हम से
नाचार हैं ग़ुस्से में क़सम खाए हुए हैं

अल्लाह री ज़िद कोठे के चढ़ने को किया तर्क
जिस रोज़ से हम यार के हम-साए हुए हैं

अब दिल को लगाते हैं ज़रा सोच समझ कर
दो-चार जगह पहले जो ज़क पाए हुए हैं

कुछ दर पे झुकाए हुए सर बैठे हैं 'साबिर'
उस बज़्म से शायद कि निकलवाए हुए हैं