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जो देखे थे जादू तिरे हात के | शाही शायरी
jo dekhe the jadu tere hat ke

ग़ज़ल

जो देखे थे जादू तिरे हात के

मुनीर नियाज़ी

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जो देखे थे जादू तिरे हात के
हैं चर्चे अभी तक इसी बात के

घटा देख कर ख़ुश हुईं लड़कियाँ
छतों पर खिले फूल बरसात के

मुझे दर्द दिल का वहाँ ले गया
जहाँ दर खुले थे तिलिस्मात के

हवा जब चली फड़फड़ा कर उड़े
परिंदे पुराने महल्लात के

न तू है कहीं और न मैं हूँ कहीं
ये सब सिलसिले हैं ख़यालात के

'मुनीर' आ रही है घड़ी वस्ल की
ज़माने गए हिज्र की रात के