जो दश्त में मिला था मुझे इतना याद है
मेरा ही नक़्श-ए-पा था मुझे इतना याद है
फिर क्या हुआ कभी मिरी बर्बादियों से पूछ
तेरी तरफ़ चला था मुझे इतना याद है
इतना लहू लहू तो नहीं था बदन मिरा
हाँ ज़ख़्म इक हरा था मुझे इतना याद है
वो भीड़ में खड़ा है जो पत्थर लिए हुए
कल तक मिरा ख़ुदा था मुझे इतना याद है
मैं जैसे मुद्दतों से इसी रहगुज़र में हूँ
पल भर का फ़ासला था मुझे इतना याद है
चेहरा किसी का अब भी तसव्वुर में है 'नफ़स'
इक अजनबी मिला था मुझे इतना याद है
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ग़ज़ल
जो दश्त में मिला था मुझे इतना याद है
नफ़स अम्बालवी