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जो दर्द-ए-दिल कहो आहिस्ता बोलो | शाही शायरी
jo dard-e-dil kaho aahista bolo

ग़ज़ल

जो दर्द-ए-दिल कहो आहिस्ता बोलो

अफ़ज़ल परवेज़

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जो दर्द-ए-दिल कहो आहिस्ता बोलो
ख़ुशी से ग़म सहो आहिस्ता बोलो

फ़ुग़ाँ करना भी जुर्म-ए-आशिक़ी है
बड़े चौकस रहो आहिस्ता बोलो

तुम्हारी आह भी है बार-ए-ख़ातिर
तकल्लुम के शहो आहिस्ता बोलो

दर-ओ-दीवार भी होते हैं जासूस
कोई सुनता न हो आहिस्ता बोलो

अब आह-ए-ज़ेर-ए-लब है बज़्म की रस्म
इसी रौ में बहो आहिस्ता बोलो

सिरहाने दिल ही दिल में बात करना
हमारे दिल-दहो आहिस्ता बोलो

सदा सर फोड़ कर आएगी वापस
यही चाबुक सहो आहिस्ता बोलो