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जो चेहरे की बनावट से यूँ ज़ुल्फ़ों को हटाती हो | शाही शायरी
jo chehre ki banawaT se yun zulfon ko haTati ho

ग़ज़ल

जो चेहरे की बनावट से यूँ ज़ुल्फ़ों को हटाती हो

मुंतज़िर फ़िरोज़ाबादी

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जो चेहरे की बनावट से यूँ ज़ुल्फ़ों को हटाती हो
उधर का पूछो मत हम से इधर बिजली गिराती हो

हमीं को जान कहती हो हमीं पे आप मरती हो
अमाँ छोड़ो ये ज़िद अपनी हमें कितना सताती हो

अभी छोड़ा कहाँ तुझ को अभी क्या बात बिगड़ी है
किनारे पर खड़े हैं हम कि तुम आँसू बहाती हो

हमें तो नाज़ था तुम पर तुम्हें भी नाज़ होना था
जलाना था ज़माने को कि तुम हम को जलाती हो

ये मौसम है बाज़ारों का कि रौनक़ खींच लाती है
हमारी जेब ख़ाली कर दिवाली तुम मनाती हो

तो कल कुछ कह रहीं थी 'मुंतज़िर' तुम ठीक दिखते हो
मैं पूछूँ भी भला तो क्या बहुत बातें बनाती हो