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जो चाहते हो सो कहते हो चुप रहने की लज़्ज़त क्या जानो | शाही शायरी
jo chahte ho so kahte ho chup rahne ki lazzat kya jaano

ग़ज़ल

जो चाहते हो सो कहते हो चुप रहने की लज़्ज़त क्या जानो

आले रज़ा रज़ा

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जो चाहते हो सो कहते हो चुप रहने की लज़्ज़त क्या जानो
ये राज़-ए-मोहब्बत है प्यारे तुम राज़-ए-मोहब्बत क्या जानो

अल्फ़ाज़ कहाँ से लाऊँ छाले की टपक को समझाऊँ
इज़हार-ए-मोहब्बत करते हो एहसास-ए-मोहब्बत क्या जानो

क्या हुस्न की भीक भी होती है जब चुटकी चुटकी जुड़ती है
हम अहल-ए-ग़रज़ जानें इस को तुम साहब-ए-दौलत क्या जानो

है फ़र्क़ बड़ा ऐ जान-ए-'रज़ा' दिल देने में दिल लेने में
उल्फ़त का तअल्लुक़ जान के भी रिश्ते की नज़ाकत क्या जानो