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जो बुझ सके न कभी दिल में है वो आग भरी | शाही शायरी
jo bujh sake na kabhi dil mein hai wo aag bhari

ग़ज़ल

जो बुझ सके न कभी दिल में है वो आग भरी

शारिक़ ईरायानी

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जो बुझ सके न कभी दिल में है वो आग भरी
बला-ए-जाँ है मोहब्बत में फ़ितरत-ए-बशरी

क़फ़स में हम ने हज़ारों असीर देखे हैं
रहा है किस का सलामत ग़ुरूर-ए-बाल-ओ-परी

तिरे जमाल के असरार कौन समझेगा
पनाह माँग रहा है शुऊ'र-ए-दीदा-दरी

सफ़र अदम का है दुश्वार तू अकेला है
मुझे भी साथ लिए चल सितारा-ए-सहरी

बना बना के हर इक शीशा तोड़ देता है
अजीब शय है मिरे शीशागर की शीशागरी

तबाहियों का ज़माना है होशियार रहो
ख़बर के रंग में ज़ाहिर हुई है बे-ख़बरी

जुनूँ का मुज़्दा-ए-फ़ुर्सत कि इन दिनों 'शारिक़'
ख़िरद का दस्त-ए-मुबारक है वक़्फ़-ए-जामा-दरी