जो बहुत बे-रुख़ी से मिलता है
क्या करें दिल उसी से मिलता है
सिर्फ़ मतलब के वास्ते अब तो
आदमी आदमी से मिलता है
वो लिखा है कहाँ किताबों में
जो सबक़ ज़िंदगी से मिलता है
मर्तबा आज भी ज़माने में
प्यार से आजिज़ी से मिलता है
इस का दरमाँ नहीं कोई 'आदिल'
दर्द जो दोस्ती से मिलता है
ग़ज़ल
जो बहुत बे-रुख़ी से मिलता है
कामरान आदिल