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जो बारिशों में जले तुंद आँधियों में जले | शाही शायरी
jo barishon mein jale tund aandhiyon mein jale

ग़ज़ल

जो बारिशों में जले तुंद आँधियों में जले

अनवर मसूद

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जो बारिशों में जले तुंद आँधियों में जले
चराग़ वो जो बगूलों की चिमनियों में जले

वो लोग थे जो फ़रेब-ए-नज़र के मतवाले
तमाम उम्र सराबों के पानियों में जले

कुछ इस तरह से लगी आग बादबानों को
कि डूबने को भी तरसे जो कश्तियों में जले

यही है फ़ैसला तेरा कि जो तुझे चाहे
वो दर्द-ओ-कर्ब-ओ-अलम की कठालियों में जले

दम-ए-फ़िराक़ ये माना वो मुस्कुराया था
मगर वो दीप कि चुपके से अँखड़ियों में जले

वो झील झील में झुरमुट न थे सितारों के
चराग़ थे कि जो चाँदी की थालियों में जले

धुआँ धुआँ है दरख़्तों की दास्ताँ 'अनवर'
कि जंगलों में पले और बस्तियों में जले