जितने अच्छे लोग हैं वो मुझ से वाबस्ता रहे
मेरे सारे बोल उन के लब से पैवस्ता रहे
सब परिंदे ला रहे हैं आसमानों से ख़बर
मेरे घर आँगन में आ कर कब वो पर-बस्ता रहे
वो तरीक़-ए-ख़ौफ़-ओ-दहशत पर अमल-पैरा सही
मैं ये कहता हूँ कि क़त्ल-ओ-ख़ूँ भी शाइस्ता रहे
बावजूद-ए-हम-नशीनी उस से कुछ पाया न फ़ैज़
दिल भी आज़ुर्दा रहा हालात भी ख़स्ता रहे
कम से कम बाक़ी रहे सब के दिलों में रस्म-ओ-राह
ये मुनासिब है घरों के दरमियाँ रस्ता रहे
सरहद-ए-इम्काँ से आगे थीं यही तारीकियाँ
क्या ज़रूरी है अँधेरा हर जगह डसता रहे
उम्र-भर करते रहे 'अलमास' मिलने से गुरेज़
कीजिए तहक़ीक़ क्यूँ वो राज़ सर-बस्ता रहे

ग़ज़ल
जितने अच्छे लोग हैं वो मुझ से वाबस्ता रहे
हमीद अलमास