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जिस्म उस के ग़म में ज़र्द-अज़-ना-तवानी हो गया | शाही शायरी
jism uske gham mein zard-az-na-tawani ho gaya

ग़ज़ल

जिस्म उस के ग़म में ज़र्द-अज़-ना-तवानी हो गया

शाह नसीर

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जिस्म उस के ग़म में ज़र्द-अज़-ना-तवानी हो गया
जामा-ए-उर्यानी अपना ज़ाफ़रानी हो गया

बे-तकल्लुफ़ हो जो बैठा खोल छाती के किवाड़
आईना हो मुन्फ़इल देख उस को पानी हो गया

क्या हुआ बहकाए से तेरे भला अब ऐ रक़ीब
आख़िरश उस ने हमारी बात मानी हो गया

जाग ऐ ग़ाफ़िल कि पीरी की हुई तेरी सहर
कट गई ग़फ़लत की शब अहद-ए-जवानी हो गया