जिस्म की क़ैद से इक रोज़ गुज़र जाओगे
ख़ुश्क पत्तों की तरह तुम भी बिखर जाओगे
तुम समुंदर की रिफ़ाक़त पे भरोसा न करो
तिश्नगी लब पे सजाए हुए मर जाओगे
वक़्त इस तरह बदल देगा तुम्हारे ख़द-ओ-ख़ाल
अपनी तस्वीर जो देखोगे तो डर जाओगे
ग़ज़ल
जिस्म की क़ैद से इक रोज़ गुज़र जाओगे
कैफ़ अज़ीमाबादी