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जिस वक़्त तू बे-नक़ाब आवे | शाही शायरी
jis waqt tu be-naqab aawe

ग़ज़ल

जिस वक़्त तू बे-नक़ाब आवे

मीर मोहम्मदी बेदार

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जिस वक़्त तू बे-नक़ाब आवे
होगा कोई जिस को ताब आवे

काफ़ी है नक़ाब-ए-ज़ुल्फ़ मुँह पर
आशिक़ से अगर हिजाब आवे

क्यूँकर कहे कोई हाल तुझ से
हर बात में जो इताब आवे

क़ासिद से कहा है वक़्त-ए-रुख़्सत
जो वो बुत-ए-बे-हिजाब आवे

ले आइयो गर जवाब देवे
लाज़िम है कि तू शिताब आवे

ऐ जाँ-ब-लब रसीदा इतना
रहना है कि ता जवाब आवे

'बेदार' को तुझ बिन ऐ दिल-आराम
होता ही नहीं कि ख़्वाब आवे