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जिस तरह लोग ख़सारे में बहुत सोचते हैं | शाही शायरी
jis tarah log KHasare mein bahut sochte hain

ग़ज़ल

जिस तरह लोग ख़सारे में बहुत सोचते हैं

इक़बाल कौसर

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जिस तरह लोग ख़सारे में बहुत सोचते हैं
आज कल हम तिरे बारे में बहुत सोचते हैं

कौन हालात की सोचों के तमव्वुज में नहीं
हम भी बह कर इसी धारे में बहुत सोचते हैं

हुनर-ए-कूज़ा-गरी ने इन्हें बख़्शी है तराश
या ये सब नक़्श थे गारे में बहुत सोचते हैं

ध्यान धरती का निकलता ही नहीं है दिल से
जब से उतरे हैं सितारे में बहुत सोचते हैं

अब मोहब्बत में भी 'इक़बाल' हमारी औक़ात
क्यूँ नहीं अपने गुज़ारे में बहुत सोचते हैं