जिस शख़्स की हो ज़ीस्त फ़क़त नाम से तेरे
उस शख़्स का क्या हाल हो पैग़ाम से तेरे
गाली है कि है सेहर कोई या कि है अफ़्सूँ
जी शाद हुआ जाता है दुश्नाम से तेरे
है अपनी ख़ुशी इस में कि तो जिस में ख़ुशी हो
आराम है अपने तईं आराम से तेरे
आहिस्ता क़दम रखियो तू ऐ नाक़ा-ए-लैला
मजनूँ का बँधा आता है दिल गाम से तेरे
जब कूचे में जा बैठते हैं तेरे तो अपनी
आँखें लगी रहती हैं दर-ओ-बाम से तेरे
है अपने हमें काम से काम ऐ बुत-ए-ख़ुद-काम
हम काम नहीं रखते हैं कुछ काम से तेरे
क्या हिज्र की रात आई कि मानिंद-ए-चराग़ाँ
फिर जलने लगे दाग़ 'हसन' शाम से तेरे
ग़ज़ल
जिस शख़्स की हो ज़ीस्त फ़क़त नाम से तेरे
मीर हसन