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जिस क़दर भी हवा है ख़ाली है | शाही शायरी
jis qadar bhi hawa hai Khaali hai

ग़ज़ल

जिस क़दर भी हवा है ख़ाली है

इनाम कबीर

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जिस क़दर भी हवा है ख़ाली है
ये जहाँ खोखला है ख़ाली है

तुम मुझे जिस मकाँ का पूछते हो
वो मिरे दोस्त का है ख़ाली है

क़हत ने सारे घर उजाड़ दिए
एक जो बच गया है ख़ाली है

अब जलाने के काम आएगा
शाख़ पर घोंसला है ख़ाली है

या'नी कम बोलने में हिकमत है
और जो चीख़ता है ख़ाली है