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जिस में सौदा नहीं वो सर ही नहीं | शाही शायरी
jis mein sauda nahin wo sar hi nahin

ग़ज़ल

जिस में सौदा नहीं वो सर ही नहीं

बेखुद बदायुनी

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जिस में सौदा नहीं वो सर ही नहीं
दर्द जिस में नहीं जिगर ही नहीं

लोग कहते हैं वो भी हैं बेचैन
कुछ ये बे-ताबियाँ इधर ही नहीं

दिल कहाँ का जो दर्द-ए-दिल ही न हो
सर कहाँ का जो दर्द-ए-सर ही नहीं

बे-ख़बर जिन की याद में हैं हम
ख़ैर से उन को कुछ ख़बर ही नहीं

'बेख़ुद'-ए-महव ओ शिकवा-हा-ए-इताब
इस मनुश का तो वो बशर ही नहीं