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जिस कूँ पियो के हिज्र का बैराग है | शाही शायरी
jis kun piyo ke hijr ka bairag hai

ग़ज़ल

जिस कूँ पियो के हिज्र का बैराग है

सिराज औरंगाबादी

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जिस कूँ पियो के हिज्र का बैराग है
आह का मज्लिस में उस की राग है

क्यूँ न होए दिल जल के ख़ाकिस्तर नमन
आतिशीं-रू की मोहब्बत आग है

ऐ दिल उस के ज़हर सें वसवास कर
ज़ुल्फ़ नीं है बल्कि काला नाग है

जब सें लाया इश्क़ ने फ़ौज-ए-जुनूँ
अक़्ल के लश्कर में भागा भाग है

ताला-ए-सिकंदरी रखता 'सिराज'
रू-ब-रू आईना-रू क्या भाग है