जिस कूँ पी का ख़याल होता है
ऊस कूँ जीना मुहाल होता है
ख़म-ए-अबरू की याद सीं दिल पर
ज़ख़्म-ए-नाखुन हिलाल होता है
चल चमन तेरे फ़ैज़-ए-क़द से सर्व
हर क़दम में निहाल होता है
जब मैं रोता हूँ खोल कर दिल कूँ
शहर में बर्शगाल होता है
कौन जाने है ग़ैर-ए-हक़ तुझ बिन
जो कि 'हातिम' का हाल होता है
ग़ज़ल
जिस कूँ पी का ख़याल होता है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम