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जिस को होना है वो इन आँखों से ओझल हो जाए | शाही शायरी
jis ko hona hai wo in aankhon se ojhal ho jae

ग़ज़ल

जिस को होना है वो इन आँखों से ओझल हो जाए

असअ'द बदायुनी

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जिस को होना है वो इन आँखों से ओझल हो जाए
उस से पहले कि मिरा काम मुकम्मल हो जाए

मैं तो बस देखता रहता हूँ ज़मीनों के कटाओ
आदमी सोचने वाला हो तो पागल हो जाए

कहीं ऐसा न हो वीराने हों फिर से आबाद
कहीं ऐसा न हो हर शहर ही जंगल हो जाए

ये ज़मीं जिस पे है गुलज़ारों की तादाद बहुत
ये भी हो सकता है कल को वही मक़्तल हो जाए

रेग-ज़ारों से बुख़ारात ही उठते हैं मगर
कौन जाने कि ये गर्मी कोई बादल हो जाए

मेरा पिंदार ही दीवार है नाकामी की
ये जो गिर जाए तो हर ख़्वाब मुकम्मल हो जाए