EN اردو
जिस को अपने बस में करना था उस से ही लड़ बैठा | शाही शायरी
jis ko apne bas mein karna tha us se hi laD baiTha

ग़ज़ल

जिस को अपने बस में करना था उस से ही लड़ बैठा

नवीन सी. चतुर्वेदी

;

जिस को अपने बस में करना था उस से ही लड़ बैठा
सीधा मंतर पढ़ते पढ़ते उल्टा मंतर पढ़ बैठा

वो ऐसा तस्वीर-नवाज़ कि जिस को मैं जंचता ही नहीं
और इक मैं हर फ़्रेम के अंदर चित्र उसी का जड़ बैठा

ज्ञान लुटाने निकला था और झोली में भर लाया प्यार
मैं ऐसा रंग-रेज़ हूँ जिस पे रंग चुनर का चढ़ बैठा

परसों मैं बाज़ार गया था दर्पन लेने की ख़ातिर
क्या बोलूँ दूकान पे ही मैं शर्म के मारे गड़ बैठा

बाक़ी बातें फिर कर लेंगे आज ये गुत्थी सुलझा लें
धरती कंकड़ पर बैठी या फिर इस पर कंकड़ बैठा