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जिस का बदन गुलाब था वो यार भी नहीं | शाही शायरी
jis ka badan gulab tha wo yar bhi nahin

ग़ज़ल

जिस का बदन गुलाब था वो यार भी नहीं

प्रकाश फ़िक्री

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जिस का बदन गुलाब था वो यार भी नहीं
अब के बरस बहार के आसार भी नहीं

पेड़ों पे अब भी छाई हैं ठंडी उदासियाँ
इम्कान जश्न-ए-रंग का इस बार भी नहीं

दरिया के इल्तिफ़ात से इतना ही बस हुआ
तिश्ना नहीं हैं होंट तो सरशार भी नहीं

राहों के पेच-ओ-ख़म भी उसे देखने का शौक़
चलने को तेज़ धूप में तय्यार भी नहीं

बिछड़े हुओं की याद निभाते हैं जान कर
वर्ना किसी को भूलना दुश्वार भी नहीं

जितना सितम-शिआर है ये दिल ये अपना दिल
उतने सितम-शिआर तो अग़्यार भी नहीं

अहल-ए-हुनर के बाब में उस का भी ज़िक्र हो
'फ़िक्री' को ऐसी बात पे इसरार भी नहीं