जिस जगह भी मिला घना साया
हम ने कुछ देर को सुकूँ पाया
हम नवेद-ए-सहर में ग़लताँ थे
ज़ुल्मत-ए-शब ने आ के चौंकाया
हम मुक़द्दर हैं धूप का यारो
हम पे हँसता है किस लिए साया
हो चले थे दयार-ए-ग़ैर के हम
तेरी यादों ने दाम फैलाया
हम घनी छाँव से निकल भागे
जब भी सूरज उरूज पर आया
ग़ज़ल
जिस जगह भी मिला घना साया
विश्वनाथ दर्द