जिस दिन से हम जुनूँ के हैं दामाँ लगे हुए
दामन की जा यहाँ हैं गरेबाँ लगे हुए
अल्लाह रे क़ैद-ख़ाना-ए-हस्ती कि दम के साथ
हर इक क़दम पे लाखों हैं ज़िंदाँ लगे हुए
रोया मैं देख मरक़द-ए-मजनूँ को धाड़ मार
थे जा-ए-गुल दरख़्त-ए-मुग़ीलाँ लगे हुए
बारे छुटे असीर-ए-बला उस गली में आज
हैं तूदा-हा-ए-गंज-ए-शहीदाँ लगे हुए
यारान-ए-पेश-रौ ज़रा ठहरो कि ज्यूँ जरस
हम पीछे पीछे आते हैं नालाँ लगे हुए
रख सोच कर क़दम मिरी वादी में गर्द-ए-बाद
पाँव से अपने हैं ये बयाबाँ लगे हुए
कोई तो मेरे नासेह-ए-दाना से ये कहो
दिल छूटते हैं बातों में नादाँ लगे हुए
क्या दिन थे वो भी 'लुत्फ' कि रहते थे मिस्ल-ए-ज़ुल्फ़
कानों से उस के हम से परेशाँ लगे हुए

ग़ज़ल
जिस दिन से हम जुनूँ के हैं दामाँ लगे हुए
मिर्ज़ा अली लुत्फ़