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जिस दिन से अपना तर्ज़-ए-फ़क़ीराना छुट गया | शाही शायरी
jis din se apna tarz-e-faqirana chhuT gaya

ग़ज़ल

जिस दिन से अपना तर्ज़-ए-फ़क़ीराना छुट गया

मुस्तफ़ा ज़ैदी

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जिस दिन से अपना तर्ज़-ए-फ़क़ीराना छुट गया
शाही तो मिल गई दिल-ए-शाहाना छुट गया

कोई तो ग़म-गुसार था कोई तो दोस्त था
अब किस के पास जाएँ कि वीराना छुट गया

दुनिया तमाम छुट गई पैमाने के लिए
वो मय-कदे में आए तो पैमाना छुट गया

क्या तेज़-पा थे दिन की तमाज़त के क़ाफ़िले
हाथों से रिश्ता-ए-शब-ए-अफ़्साना छुट गया

इक दिन हिसाब होगा कि दुनिया के वास्ते
किन साहिबों का मसलक-ए-रिंदाना छुट गया