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जिस भी लफ़्ज़ पे उँगलियाँ रख दे साज़ करे | शाही शायरी
jis bhi lafz pe ungliyan rakh de saz kare

ग़ज़ल

जिस भी लफ़्ज़ पे उँगलियाँ रख दे साज़ करे

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

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जिस भी लफ़्ज़ पे उँगलियाँ रख दे साज़ करे
नज़्म की मर्ज़ी कैसे भी आग़ाज़ करे

कौन लगाए क़दग़न ख़्वाब में अशिया पर
आइना हाथ मिलाए अक्स आवाज़ करे

जब बच्चों को देखता हूँ तो सोचता हूँ
मालिक इन फूलों की उम्र दराज़ करे

सोते जागते कुछ भी बोलता रहता हूँ
कौन भला मुझ ऐसे को हमराज़ करे

क़दम क़दम पर इन की ज़रूरत पड़ती है
आँख से कहना आँसू पस-अंदाज़ करे