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जिन्हें था फ़ख़्र नवाब-ओ-नजीब होते हैं | शाही शायरी
jinhen tha faKHr nawab-o-najib hote hain

ग़ज़ल

जिन्हें था फ़ख़्र नवाब-ओ-नजीब होते हैं

आबिद काज़मी

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जिन्हें था फ़ख़्र नवाब-ओ-नजीब होते हैं
अब उन के घर में तमाशे अजीब होते हैं

यज़ीद-ए-वक़्त को जो बरमला ही टोक सके
रक़म वो नाम ही ज़ेर-ए-सलीब होते हैं

वो जन को तू ने बड़ा दिल दिया है मेरे ख़ुदा
तो क्यूँ ये होता है अक्सर ग़रीब होते हैं

जो लोग मज़हब-ओ-मस्लक की हद से ऊपर हैं
हमारे दिल के वो यकसर क़रीब होते हैं

दुआओं में जिन्हें माँ बाप याद ही न रखें
अमीर-ए-वक़्त हों लेकिन ग़रीब होते हैं