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जिन के नसीब में आब-ओ-दाना कम कम होता है | शाही शायरी
jin ke nasib mein aab-o-dana kam kam hota hai

ग़ज़ल

जिन के नसीब में आब-ओ-दाना कम कम होता है

अकबर हैदराबादी

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जिन के नसीब में आब-ओ-दाना कम कम होता है
माइल उन की सम्त ज़माना कम कम होता है

रस्ते ही में हो जाती हैं बातें बस दो-चार
अब तो उन के घर भी जाना कम कम होता है

मुश्किल ही से कर लेती है दुनिया उसे क़ुबूल
ऐसी हक़ीक़त जिस में फ़साना कम कम होता है

कभी जो बातें इश्क़ के साल-ओ-सिन का हासिल थीं
अब उन बातों का याद आना कम कम होता है

रिंद सभी साग़र पर साग़र छलकाते जाते हैं
क्यूँ लबरेज़ मिरा पैमाना कम कम होता है

बात पते की कर जाता है यूँ तो कभी कभी
होश में लेकिन ये दीवाना कम कम होता है

कितनी मुक़द्दस होगी 'अकबर' उस बच्चे की प्यास
जिस की इक ठोकर से रवाना ज़मज़म होता है