जीता हूँ जो मर मर के ये जीना तो नहीं है
दुनिया मिरे एहसास की दुनिया तो नहीं है
कहने को तो है दीदा-ए-नर्गिस में भी जादू
हर आँख में तस्वीर-ए-तमन्ना तो नहीं है
ये हुस्न के जल्वे ये फ़ज़ाओं का तरन्नुम
ये शाम-ए-चमन शाम-ए-कलीसा तो नहीं है
आया है दिल-ए-ज़ार को पैग़ाम-ए-मसर्रत
ये भी ग़म-ए-फ़र्दा का तक़ाज़ा तो नहीं है
यूँ रूठ के जाने पे मैं ख़ामोश हूँ लेकिन
ये बात मिरे दिल को गवारा तो नहीं है
हर हाल में लाज़िम है मुझे पास-ए-मोहब्बत
ये सच है मगर दिल का भरोसा तो नहीं है
बिगड़े थे वो जिस बात पे मुझ से सर-ए-महफ़िल
ऐ 'नक़्श' दिल उस बात को भूला तो नहीं है
ग़ज़ल
जीता हूँ जो मर मर के ये जीना तो नहीं है
महेश चंद्र नक़्श

