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जीना है तो जीने की पहली सी अदा माँगो | शाही शायरी
jina hai to jine ki pahli si ada mango

ग़ज़ल

जीना है तो जीने की पहली सी अदा माँगो

तुफ़ैल अहमद मदनी

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जीना है तो जीने की पहली सी अदा माँगो
फ़िरऔन से टकराओ मूसा से असा माँगो

हर राह में ख़ुद छोड़ो क़दमों के निशाँ अपने
तौहीन है ग़ैरों से नक़्श-ए-कफ़-ए-पा माँगो

माँगूँगा बहुत कुछ मैं सोचा तो ये था लेकिन
लब हो गए पत्थर के जब उस ने कहा माँगो

राज़ी-ब-रज़ा रहना है शेवा-ए-अहल-ए-दिल
माँगो तो बहर-सूरत मर्ज़ी-ए-ख़ुदा माँगो

दर पर कभी ग़ैरों के जो तुम को न झुकने दे
तौफ़ीक़-ए-इलाही से कुछ ऐसी अना माँगो

किस हाल में रक्खा है देखें तो हमें दिल में
इस शो'ला-ए-रंगीं से आईना ज़रा माँगो

मस्ती में 'तुफ़ैल' उस ने मुझ को ये दुआ दी थी
अल्लाह करे पूरी तुम जो भी दुआ माँगो