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जीना है ख़ूब औरों की ख़ातिर जिया करो | शाही शायरी
jina hai KHub auron ki KHatir jiya karo

ग़ज़ल

जीना है ख़ूब औरों की ख़ातिर जिया करो

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

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जीना है ख़ूब औरों की ख़ातिर जिया करो
इक-आध साँस ख़ुद भी तो लेते रहा करो

क्या हर्ज है जो दिल की भी सुन लो कभी कभी
यूँ अपने आप से न हमेशा लड़ा करो

ये बार-ए-ज़ीस्त झेलते रहना है उम्र-भर
अपनी थकन पे टिक के कभी सो लिया करो

है बस-कि ख़ाक उड़ाने की आवारगी को खो
रख़्त-ए-सफ़र में घर को भी बाँधे फिरा करो

अफ़ई भी सो रहे हैं चमेली की छाँव में
नौ-वारिद-ए-चमन हो सँभल कर चला करो

कितना कहा था तुम से कि मत खेलो आग से
अब जो सुलग पड़ी है तो चुपके जला करो