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जी जाए मगर न वो परी जाए | शाही शायरी
ji jae magar na wo pari jae

ग़ज़ल

जी जाए मगर न वो परी जाए

सख़ी लख़नवी

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जी जाए मगर न वो परी जाए
यारब न हमारी दिल-लगी जाए

दिल हिज्र में जाए या कि जी जाए
जिस का जी चाहे वो अभी जाए

इस गिल का न वस्ल हो न जी जाए
क्यूँकि मेरे दिल की बे-कली जाए

तुम लाल-ए-लब अपने गर दिखाओ
फिर सू-ए-यमन न जौहरी जाए

इस ग़ुंचा-दहन की बू न लाए
दिखलाए न मुँह सबा चली जाए

सौग़ात की तरह पेश-ए-मजनूँ
बेड़ी और मेरी हथकड़ी जाए

साबित है जब पहाड़-ए-वहशत
जब तक दामन हमारा सी जाए

ग़ैरों को तो मय पिलाए साक़ी
मैं माँगूँ तो साफ़ सुन के पी जाए

हम-राह हो परवरिश-ए-अली भी
याँ से जो कर्बला 'सख़ी' जाए