जी जाए मगर न वो परी जाए
यारब न हमारी दिल-लगी जाए
दिल हिज्र में जाए या कि जी जाए
जिस का जी चाहे वो अभी जाए
इस गिल का न वस्ल हो न जी जाए
क्यूँकि मेरे दिल की बे-कली जाए
तुम लाल-ए-लब अपने गर दिखाओ
फिर सू-ए-यमन न जौहरी जाए
इस ग़ुंचा-दहन की बू न लाए
दिखलाए न मुँह सबा चली जाए
सौग़ात की तरह पेश-ए-मजनूँ
बेड़ी और मेरी हथकड़ी जाए
साबित है जब पहाड़-ए-वहशत
जब तक दामन हमारा सी जाए
ग़ैरों को तो मय पिलाए साक़ी
मैं माँगूँ तो साफ़ सुन के पी जाए
हम-राह हो परवरिश-ए-अली भी
याँ से जो कर्बला 'सख़ी' जाए
ग़ज़ल
जी जाए मगर न वो परी जाए
सख़ी लख़नवी