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जी है बहुत उदास तबीअत हज़ीं बहुत | शाही शायरी
ji hai bahut udas tabiat hazin bahut

ग़ज़ल

जी है बहुत उदास तबीअत हज़ीं बहुत

अज़ीज़ हामिद मदनी

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जी है बहुत उदास तबीअत हज़ीं बहुत
साक़ी को प्याला-ए-मय-ए-आतिशीं बहुत

दो गज़ ज़मीं फ़रेब-ए-वतन के लिए मिली
वैसे तो आसमाँ भी बहुत हैं ज़मीं बहुत

ऐसी भी इस हवा में है इक काफ़िरी की रौ
बुझ बुझ गए हैं शोला-ए-ईमान-ओ-दीं बहुत

बे-बाकियों में फ़र्द बहुत थी वो चश्म-ए-नाज़
दिल की हरीफ़ हो के उठी शर्मगीं बहुत

पैकार-ए-ख़ैर-ओ-शर से गुज़र आई ज़िंदगी
तेरी वफ़ा का दौर था अहद-आफ़रीं बहुत

फ़रियाद थी चकीदा-ए-ख़ून-ए-गुलू तमाम
नग़्मा भी हम-सफ़ीर था कार-ए-हज़ीं बहुत

ऐ दिल तुझी पे ख़त्म नहीं दास्तान-ए-इश्क़
अफ़्साना-ख़्वाँ मिले मिज़ा ओ आस्तीं बहुत

ऐसी हवा में घर से निकलने की जा न थी
वर्ना तमाम बात का आता यक़ीं बहुत

ऐ इंक़लाब-ए-रंग तबीअत सँभालना
हम भी उठे हैं बज़्म से अब के हज़ीं बहुत