जी दर्द से है निढाल अपना
किस किस को सुनाएँ हाल अपना
बोले वो कुछ ऐसी बे-रुख़ी से
दिल ही में रहा सवाल अपना
शायद तिरी सादगी ने अब तक
देखा ही नहीं जमाल अपना
जिस दिन से भुला दिया है तू ने
आता ही नहीं ख़याल अपना
है 'सैफ़' मुहीत-ए-हर-दो-आलम
इक सिलसिला-ए-ख़याल अपना
ग़ज़ल
जी दर्द से है निढाल अपना
सैफ़ुद्दीन सैफ़