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जी दर्द से है निढाल अपना | शाही शायरी
ji dard se hai niDhaal apna

ग़ज़ल

जी दर्द से है निढाल अपना

सैफ़ुद्दीन सैफ़

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जी दर्द से है निढाल अपना
किस किस को सुनाएँ हाल अपना

बोले वो कुछ ऐसी बे-रुख़ी से
दिल ही में रहा सवाल अपना

शायद तिरी सादगी ने अब तक
देखा ही नहीं जमाल अपना

जिस दिन से भुला दिया है तू ने
आता ही नहीं ख़याल अपना

है 'सैफ़' मुहीत-ए-हर-दो-आलम
इक सिलसिला-ए-ख़याल अपना