EN اردو
जिगर में दर्द तो है दिल में इज़्तिराब तो है | शाही शायरी
jigar mein dard to hai dil mein iztirab to hai

ग़ज़ल

जिगर में दर्द तो है दिल में इज़्तिराब तो है

नसीर आरज़ू

;

जिगर में दर्द तो है दिल में इज़्तिराब तो है
तुम्हारे ग़म में मिरी ज़िंदगी ख़राब तो है

मैं सिर्फ़ तीरा-शबी पर यक़ीं नहीं रखता
अभी ज़मीं पे चमकने को आफ़्ताब तो है

अभी सुरूर के अस्बाब पाए जाते हैं
कि मय-कदे में सुराही तो है शराब तो है

हर एक शख़्स ज़माने में इंक़िलाबी है
कि इंक़िलाब नहीं फ़िक्र-ए-इंक़िलाब तो है

गुज़र रही है तसव्वुर में ज़िंदगी अपनी
अब 'आरज़ू' न सही आरज़ू का ख़्वाब तो है