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जिगर-ए-सोख़्ता हैं और दिल-ए-बिरयाँ हैं हम | शाही शायरी
jigar-e-soKHta hain aur dil-e-biryan hain hum

ग़ज़ल

जिगर-ए-सोख़्ता हैं और दिल-ए-बिरयाँ हैं हम

मीर हसन

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जिगर-ए-सोख़्ता हैं और दिल-ए-बिरयाँ हैं हम
शोले की तरह सदा दीदा-ए-गिर्यां हैं हम

मुत्तसिल लख़्त-ए-जिगर करते हैं आँखों से सदा
आह किस आशिक़-ए-ग़म-दीदा की मिज़्गाँ हैं हम

कभी हँसते हैं कभी रोते हैं जलते हैं कभी
गुल हैं शबनम हैं कि या आतिश-ए-सोज़ाँ हैं हम

हम में ही आलम-ए-अकबर हुए गो जुर्म-ए-सग़ीर
मज़हर-ए-जल्वा-ए-हक़ हज़रत-ए-इंसाँ हैं हम

दहर पुर-शोर है हाथों से हमारे ऐ आह
आफ़रीनश में मगर नाला-ओ-अफ़्ग़ाँ हैं हम

फ़िक्र-ए-जमइय्यत-ए-दिल हम को कहाँ आह 'हसन'
ख़ातिर-आशुफ़्ता-ए-गेसू-ए-परेशाँ हैं हम