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झूटी ही तसल्ली हो कुछ दिल तो बहल जाए | शाही शायरी
jhuTi hi tasalli ho kuchh dil to bahal jae

ग़ज़ल

झूटी ही तसल्ली हो कुछ दिल तो बहल जाए

फ़ना निज़ामी कानपुरी

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झूटी ही तसल्ली हो कुछ दिल तो बहल जाए
धुंदली ही सही लेकिन इक शम्अ तो जल जाए

इस मौज की टक्कर से साहिल भी लरज़ता है
कुछ रोज़ तो तूफ़ाँ की आग़ोश में पल जाए

मजबूरी-ए-साक़ी भी ऐ तिश्ना-लबो समझो
वाइज़ का ये मंशा है मय-ख़्वारों में चल जाए

ऐ जल्वा-ए-जानाना फिर ऐसी झलक दिखला
हसरत भी रहे बाक़ी अरमाँ भी निकल जाए

इस वास्ते छेड़ा है परवानों का अफ़्साना
शायद तिरे कानों तक पैग़ाम-ए-अमल जाए

मय-ख़ाना-ए-हस्ती में मय-कश वही मय-कश है
सँभले तो बहक जाए बहके तो सँभल जाए

हम ने तो 'फ़ना' इतना मफ़्हूम-ए-ग़ज़ल समझा
ख़ुद ज़िंदगी-ए-शायर अशआर में ढल जाए