झूटे इक़रार से इंकार अच्छा
तुम से तो मैं ही गुनहगार अच्छा
हब्स छट जाए दिया जलता रहे
घर बस इतना ही हवा-दार अच्छा
इज्ज़ ख़्वारी है न ज़ाहिर-दारी
इज्ज़ को चाहिए मेयार अच्छा
ये इमारत है इसी वास्ते ख़ूब
इस इमारत का था मेमार अच्छा
अब भी इक ख़िदमत-ए-शह ख़सलत में
शाम को जमता है दरबार अच्छा
छोड़ो ये तजरबे ऐ चारागरो
जीने दो मुझ को मैं बीमार अच्छा
सुख से तो फ़न कभी पंपा ही नहीं
जो दुखी है वही फ़नकार अच्छा
ग़ज़ल
झूटे इक़रार से इंकार अच्छा
महशर बदायुनी