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झूटे इक़रार से इंकार अच्छा | शाही शायरी
jhuTe iqrar se inkar achchha

ग़ज़ल

झूटे इक़रार से इंकार अच्छा

महशर बदायुनी

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झूटे इक़रार से इंकार अच्छा
तुम से तो मैं ही गुनहगार अच्छा

हब्स छट जाए दिया जलता रहे
घर बस इतना ही हवा-दार अच्छा

इज्ज़ ख़्वारी है न ज़ाहिर-दारी
इज्ज़ को चाहिए मेयार अच्छा

ये इमारत है इसी वास्ते ख़ूब
इस इमारत का था मेमार अच्छा

अब भी इक ख़िदमत-ए-शह ख़सलत में
शाम को जमता है दरबार अच्छा

छोड़ो ये तजरबे ऐ चारागरो
जीने दो मुझ को मैं बीमार अच्छा

सुख से तो फ़न कभी पंपा ही नहीं
जो दुखी है वही फ़नकार अच्छा