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झूट की मिक़दार कम है और सच्चाई बहुत | शाही शायरी
jhuT ki miqdar kam hai aur sachchai bahut

ग़ज़ल

झूट की मिक़दार कम है और सच्चाई बहुत

क़ाज़ी हसन रज़ा

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झूट की मिक़दार कम है और सच्चाई बहुत
साफ़-गोई से हुई है मेरी रुस्वाई बहुत

अपनी कम-गोई से क़द-आवर तो छोटे बन गए
बढ़ गई लफ़्फ़ाज़ बौनों की अब ऊँचाई बहुत

बे-नियाज़ाना मैं अपनी जुस्तुजू में गुम रहा
याद उन की मेरे दिल में आ के शर्माई बहुत

तीरा-बख़्ती ने असीरी में निभाया मेरा साथ
रौज़न-ए-ज़िंदाँ से यूँ तो रौशनी आई बहुत

खोखले अल्फ़ाज़ मरहम बन न पाए ऐ 'रज़ा'
झूटे सच्चे आँसुओं ने की मसीहाई बहुत