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झूट फ़िरदौस के फ़साने हैं | शाही शायरी
jhuT firdaus ke fasane hain

ग़ज़ल

झूट फ़िरदौस के फ़साने हैं

शाद लखनवी

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झूट फ़िरदौस के फ़साने हैं
दूर के ढोल ही सुहाने हैं

भोली बातों में भी बहाने हैं
कम-सिनी में बड़े सियाने हैं

पूछिए उन से इश्क़ की राहें
कि ख़िज़र आदमी पुराने हैं

बालछड़ क्या कहूँ मैं काकुल को
सैकड़ों इस में शाख़साने हैं

तौक़ गर्दन में पाँव में ज़ंजीर
यही हम वहशियों के बाने हैं

ऐ परी क्या करें हम अब तस्ख़ीर
न तू मुल्ला न हम सियाने हैं

अब्र-ए-रहमत हो या कि अब्र-ए-करम
मय-परस्तों के शामियाने हैं

पाएँती हैं मलक तो हों ऐ 'शाद'
ग़म नहीं पंज-तन सिरहाने हैं