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झुलसती धूप में ठंडी हवा का झोंका भेज | शाही शायरी
jhulasti dhup mein ThanDi hawa ka jhonka bhej

ग़ज़ल

झुलसती धूप में ठंडी हवा का झोंका भेज

रऊफ़ अमीर

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झुलसती धूप में ठंडी हवा का झोंका भेज
चमन से जानिब-ए-सहरा भी कोई तोहफ़ा भेज

मुझे तग़य्युर-ए-मौसम का कुछ यक़ीन दिला
अगर तसलसुल-ए-बाराँ नहीं तो क़तरा भेज

बहुत दिनों से मुझे तेरे ख़्वाब आते हैं
कोई पयाम कोई ख़ैर का संदेसा भेज

कभी मिरी भी समाअत पे कोई नग़्मा लिख
मिरे भी घर के शजर पर कोई परिंदा भेज

हमारे सहन में शाख़ों के हाथ ख़ाली हैं
बहार उन के लिए मोतिए का गजरा भेज

ख़ला के गुम्बद-ए-बे-दर में कोई रौज़न कर
ख़ुदा-ए-नूर फ़लक पर कोई सितारा भेज

हर इक फ़क़ीर पे बाब-ए-करम नहीं खुलता
'रऊफ़' अमीर दर-ए-नीम-वा से कासा भेज