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झुकी निगह में है ढब पुर्सिश-ए-निहानी का | शाही शायरी
jhuki nigah mein hai Dhab pursish-e-nihani ka

ग़ज़ल

झुकी निगह में है ढब पुर्सिश-ए-निहानी का

ममनून निज़ामुद्दीन

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झुकी निगह में है ढब पुर्सिश-ए-निहानी का
हया में ज़ोर दिया रंग मेहरबानी का

जिए हैं गर्म नफ़स सोज़ से कि बहर-ए-चराग़
करे है शोला ही काम आब-ए-ज़ि़ंदगानी का

तबस्सुम-ए-लब-ए-ग़ुंचा को देख रोता हूँ
कि ठीक रंग है उस ख़ंदा-ए-निहानी का

कहाँ से ज़ोर-ए-दिल-ओ-सीना-ओ-जिगर लाऊँ
तुम्हें तो खेल लगा हाथ तेग़-रानी का

इलाही जैब कि दामन कि आस्तीं धोऊँ
मिज़ा ने सीख लिया शग़्ल ख़ूँ-फ़िशानी का

नहीं बचा मरज़-ए-इश्क़ से कोई 'ममनूँ'
हमें दरेग़ बहुत है तिरी जवानी का