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झोंके आते हैं बू-ए-उल्फ़त के | शाही शायरी
jhonke aate hain bu-e-ulfat ke

ग़ज़ल

झोंके आते हैं बू-ए-उल्फ़त के

बयान यज़दानी

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झोंके आते हैं बू-ए-उल्फ़त के
फूल यारब हैं किस की तुर्बत के

शोर है दिल में ग़म के नालों का
अलम उठते हैं आज हसरत के

तेरी बातों में क्या हलावत थी
कि न लब खुल सके शिकायत के

हम पे और तेग़-ए-नाज़ उठ न सके
चोचले हैं तिरी नज़ाकत के

ऐ 'बयाँ' क़ैस-ओ-वामिक़-ओ-फ़र्हाद
थे ये सारे मुरीद हज़रत के