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जज़्बात की शिद्दत से निखरता है बयाँ और | शाही शायरी
jazbaat ki shiddat se nikharta hai bayan aur

ग़ज़ल

जज़्बात की शिद्दत से निखरता है बयाँ और

एहसान जाफ़री

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जज़्बात की शिद्दत से निखरता है बयाँ और
ग़ैरों से मोहब्बत में सँवरती है ज़बाँ और

एहसास की पलकों में तिरी याद का परतव
ग़मगीन बना देता है महफ़िल का समाँ और

गुज़रे हुए हालात से बनती है कहानी
गिरते हुए तारों से मुनव्वर है मकाँ और

मुझ को न बता ज़ीस्त के इम्कान बहुत हैं
मिट्टी में नमी हो तो उभरते हैं निशाँ और

आँगन ही में ख़ुशबू को मुक़य्यद न करो तुम
परवाज़ से मिल जाएँगे इंसाँ को जहाँ और