EN اردو
जज़्बा-ए-दर्द-ए-मुहब्बत ने अगर साथ दिया | शाही शायरी
jazba-e-dard-e-mohabbat ne agar sath diya

ग़ज़ल

जज़्बा-ए-दर्द-ए-मुहब्बत ने अगर साथ दिया

नवाब मोअज़्ज़म जाह शजीअ

;

जज़्बा-ए-दर्द-ए-मुहब्बत ने अगर साथ दिया
बात बन जाएगी क़िस्मत ने अगर साथ दिया

आप उठेंगे कब आग़ोश-ए-तमन्ना से मिरी
ज़िंदगी का शब-ए-फ़ुर्क़त ने अगर साथ दिया

साथ देगी न कभी मेरी मोहब्बत मेरा
आप की चश्म-ए-इनायत ने अगर साथ दिया

नहीं मा'लूम कि अंजाम-ए-मोहब्बत क्या हो
ग़म का ख़ुद ग़म की हक़ीक़त ने अगर साथ दिया

कहीं गुमनाम न हो जाएँ वफ़ा में मेरी
मेरी रुस्वाई की शोहरत ने अगर साथ दिया

बद-गुमानी में मोहब्बत का इज़ाफ़ा होगा
ख़ुद मिरा मेरी मुसीबत ने अगर साथ दिया

चैन से होगी बसर अपनी जुदाई में 'शजीअ'
उन निगाहों की शरारत ने अगर साथ दिया