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जज़्ब होने भी न पाए थे हमारे आँसू | शाही शायरी
jazb hone bhi na pae the hamare aansu

ग़ज़ल

जज़्ब होने भी न पाए थे हमारे आँसू

मसूद मैकश मुरादाबादी

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जज़्ब होने भी न पाए थे हमारे आँसू
याद फिर आ गए भूले से तुम्हारे आँसू

बन ही जाते कभी हस्ती के सहारे आँसू
हाए रुक ही न सके हम से हमारे आँसू

मेरी आँखों में रहे वो तो खटकते ही रहे
उन के दामन पे बने चांद-सितारे आँसू

टूटती है दिल-ए-ग़म-गीं पे क़यामत क्या क्या
आ के पलकों पे जो रुकते हैं हमारे आँसू

ये न होते तो क़यामत था सहर तक जीना
मेरे प्यारे मिरी रातों के सहारे आँसू

अज़्मत-ए-इश्क़ है पाबंदी-ए-ज़ब्त-ए-फुर्क़त
या'नी तौहीन-ए-मोहब्बत हैं हमारे आँसू

एक आँसू न बहाऊँ ग़म-ए-दुनिया के लिए
ग़म-ए-जानाँ के लिए हैं मिरे सारे आँसू

वो भी क्या साअत-ए-रंगीं थी कि जब ऐ 'मैकश'
उन के आँचल में हुए जज़्ब हमारे आँसू