EN اردو
जज़्ब-ए-दिल कारगर नहीं होता | शाही शायरी
jazb-e-dil kargar nahin hota

ग़ज़ल

जज़्ब-ए-दिल कारगर नहीं होता

जिगर बरेलवी

;

जज़्ब-ए-दिल कारगर नहीं होता
उस के दिल पर असर नहीं होता

दर्द दिल में अगर नहीं होता
बात में कुछ असर नहीं होता

न करे तर्क पैरवी जब तक
राह-रौ राहबर नहीं होता

रंग लाती नहीं मोहब्बत कुछ
सोज़ जब तक शरर नहीं होता

नहीं खुलता दर-ए-नशात-ए-अबद
चाक जब तक जिगर नहीं होता

बढ़ते जाते हैं राह में काँटे
यारब आगे सफ़र नहीं होता

जानता हूँ मआ'ल-ए-बेताबी
दिल पे क़ाबू मगर नहीं होता

हो न जब तक उसी का फ़ज़्ल-ओ-करम
क़तरा दरिया 'जिगर' नहीं होता